Tuesday 1 August 2017

पतंग के पेंचों में है जीवन जीने का सलीका..LEARNING FROM THE KITE IN HINDI






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अभी-अभी हमारे बीच से पतंगोत्सव यानी उत्तरायण का पर्व गुजरा। हमने भी खूब पतंगें उड़ाई होंगी। कई लोगों को अपना बचपन याद आ गया होगा। पर कभी सोचा आपने कि पतंग हमें जीवन जीने का सलीका सिखा सकती है। इससे हम जीवन जीने की कला सीख सकते हैं। पतंग का उड़ना हमें जीवन का संदेश दे सकता है।
बहुत ही कम कीमत में मिलने वाली यह पतंग हमें कीमती सीख दे सकती है। आज तक शायद हमने नहीं जाना, पर आज मैं आपको बताता हूं कि पतंग से किस तरह जीवन जीने के गुर सीख् सकते हैं। आकाश में तैरती रंग-बिरंगी पतंगें भला किसे अच्छी नहीं लगती? एक डोर से बंधी हवा में हिचकोले खाती हुई पतंग कई अर्थों में हमें अनुशासन का सबक देती हैं। ज़रा उसकी हरकतों पर ध्यान तो दीजिए, फिर समझ जाएंगे कि मात्र एक डोर से वह किस तरह से हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाती है।
अनुशासन कई लोगों को एक बंधन लग सकता है। निश्चय ही एक बार कि यह सबको बंधन ही लगता है, पर सच यह है कि वह अपने आप में एक मुक्त व्यवस्था है, जो जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए अतिआवश्यक है। आप याद करें, बरसों बाद जब मां अपने पुत्र से मिलती हैं, तब उसे वह कसकर अपनी बांहों में भींच लेती है। क्या थोड़े ही पलों का यह बंधन सचमुच बंधन है? क्या आप बार-बार इस बंधन में बंधना नहीं चाहेंगे? यहां यह कहा जा सकता है कि बंधन में भी सुख है। यही है अनुशासन।
अनुशासन को यदि दूसरे ढंग से समझना हो, तो हमारे सामने पतंग का उदाहरण है। पतंग काफी ऊपर होती है, एक डोर ही होती है, जो उसे संभालती है। बच्चा यदि पिता से कहे कि यह पतंग तो डोर से बंधी हुई है, तब यह कैसे मुक्त आकाश में विचर सकती है? तब यदि पिता पतंग की डोर को काट दें, तो बच्चा कुछ ही देर में पतंग को जमीन पर पाता है। बच्चा जिस डोर को पतंग के लिए बंधन समझ रहा था, वह बंधन ही था, जो पतंग को ऊपर उड़ा रहा था। यही है बंधन का अनुशासन।
गुजरात-राजस्थान में मकर संक्रांति के अवसर पर पतंग उड़ाने की परंपरा है। इस दिन लोग पूरे दिन अपने घर की छत पर रहकर पतंग उड़ाते हैं। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, ऐसे में युवाओं की बात ही क्या! पतंग का यह त्योहार अपनी संस्कृति की विशेषता ही नहीं, अपितु आदर्श व्यक्तित्व का संदेश भी देता है। आइए, जानें पतंग से जीवन जीने की कला किस तरह से सीखी जा सकती है।
पतंग का आशय है, अपार संतुलन, नियमबद्ध नियंत्रण, सफल होने का आक्रामक जोश और परिस्थितियों के अनुकूल होने का अद्भुत समन्वय। यह आक्रामक एवं जोशीले व्यक्तित्व की भी प्रतीक है। पतंग का कन्ना संतुलन की कला सिखाता है। कन्ना बांधने में थोड़ी-सी लापरवाही होने पर पतंग यहां-वहां डोलती है, यानी सही संतुलन नहीं रह पाता। इसी तरह जीवन और व्यक्तित्व में भी संतुलन न होने पर जीवन गोते खाने लगता है। आज के इस तेजी से बदलते आधुनिक परिवेश में नौकरी-व्यवसाय और पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन रखना अति आवश्यक है। इसमें हुई थोड़ी सी-चूक या लापरवाही जिंदगी की पतंग को असंतुलित कर देती है।
पतंग से सीखने का दूसरा गुण है नियंत्रण। खुले आकाश में उड़ने वाली पतंग को देखकर लगता है कि वह अपने-आप ही उड़ रही है, लेकिन उसका नियंत्रण डोर के माध्यम से उड़ाने वाले के हाथ में होता है। डोर का नियंत्रण ही पतंग को भटकने से रोकता है। मानव व्यक्तित्व के लिए भी एक ऐसी ही लगाम की आवश्यकता है। निश्चित लक्ष्य से दूर ले जाने वाले अनेक प्रलोभन मनुष्य के सामने आते हैं। इस समय स्वैच्छिक नियंत्रण और अनुशासन ही उसकी पतंग को निरंकुश बनने से रोक सकता है। पतंग की उड़ान तभी सफल होती है, जब प्रतिस्पर्धा में दूसरी पतंग के साथ उसके पेंच लड़ाए जाएं। पतंग के पेंच में हार-जीत की जो भावना देखने में आती है, वह शायद ही कहीं और देखने को मिले। पतंग किसी की भी कटे, खुश दोनों ही होते हैं। जिसकी पतंग कटती है, वह भी अपना ग़म भूलकर दूसरी पतंग का कन्ना बांधने में लग जाता है। यही व्यावहारिकता जीवन में भी होनी चाहिए। अपना ग़म भूलकर दूसरों की खुशियों में शामिल होना और एक नए संकल्प के साथ जीवन की राहों पर चल निकलना ही इंसानियत है।
पतंग का आकार भी उसे एक अलग ही महत्व देता है। हवा को तिरछार काटने वाली पतंग हवा के रुख के अनुसार अपने आपको संभालती है। आकाश में अपनी उड़ान को कायम रखने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहने वाली पतंग हवा की गति के साथ मुड़ने में ज़रा भी देर नहीं करती। हवा की दिशा बदलते ही वह भी अपनी दिशा तुरंत बदल देती है। इसी तरह मनुष्य को परिस्थितियों के अनुसार ढलना आना चाहिए। जो अपने-आपको हालात के अनुसार नहीं ढाल पाते, वे ‘आऊट डेटेड’ बन जाते हैं और हमेशा गतिशील रहने वाले ‘एवरग्रीन’ होते हैं। यह सीख हमें पतंग से ही मिलती है।
पतंग उड़ाने में सिद्धहस्त व्यक्ति यदि जीवन को भी उसी अंदाज़ में ले, तो वह भी जीवन की राह में सदैव अग्रसर होता जाएगा। पतंग उड़ाने वाले हमेशा खराब मांजे को अलग कर देते हैं, उस धागे से पेंच नहीं लड़ाए जाते। ठीक उसी तरह जीवन में भी ऐसे सबल व्यक्ति पर विश्वास किया जाता है, जिस पर जीवन के अनुभवों का मांजा लगा हो। ऐसा व्यक्ति ही हमारे काम आ सकता है। धागों में कहीं अवरोध या गठान नहीं होनी चाहिए, क्योंकि पेंच लड़ाते समय यदि प्रतिद्वंद्वी का धागा उस गठान के पास आकर अटक गया, तो समझो कट गई पतंग। पतंग का धागा वहीं रगड़ खाएगा और डोर को काट देगा। जीवन भी यही कहता है। जीवन में अनंत अवरोध आते हैं, परंतु सही इंसान इस मोह के पड़ाव पर नहीं ठहरता, वह सदैव मंजि़ल की ओर ही बढ़ता जाता है। ‘चलना जीवन की कहानी, रुकना मौत की निशानी’ जीवन का यही मूलवाक्य होता है।
जीवन के अनुभव भी हमें कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में मिल सकते हैं। छोटे बच्चे भी प्रेरणा के स्रोत  बन सकते हैं, तो झुर्रीदार चेहरा भी हमें अनुभवों के मोती बांटता मिलेगा। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हमें किस तरह से अनुभवों के मोतियों को समेटते हैं।

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 डॉ. महेश परिमल

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