Thursday 3 August 2017

पिता का दिल को छूने वाला पत्र अपने पुत्र के नाम..



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दोस्तोँ यह ‘अमर’ पत्र डब्ल्यू लिवंगस्टन लारनेड ने अपने बेटे को लिखा
था। इस पत्र की लाखोँ प्रतियाँ छप चुकी है। हमनेँ यह पत्र “जीत या हार
रहो तैयार” उज्जवल पाटनी जी की बेहतरीन किताब मेँ से पढ़ी और इसके लिखे
एक-एक शब्द मेरे दिल मेँ उतर गये।
यहाँ यह पत्र आपके लिये प्रस्तुत है: संकलित
सुनो बेटे: मैँ तुमसे यह कह रहा हूँ, जब तुम गहरी नीँद मेँ सोए हो,
तुम्हारा छोटा-सा हाथ गाल के नीचे है और बालोँ की सुनहरी लटेँ तुम्हारे
भीगे माथे पर चिपकी है। मैँ अकेला चुपके से तुम्हारे कमरे मेँ चला आया
हूँ। कुछ मिनट पहले, जब मैँ लाइब्रेरी मेँ बैठा अखबार पढ़ रहा था, पछतावे
की लहर मेरे भीतर दौड़ गई। अपराध बोध से भरा हुआ, मैँ तुम्हारे बिस्तर के
पास आया।
बेटे, मैँ इन चीजोँ के बारे मेँ सोच रहा था: मैँ तुमसे नाराज था। स्कूल
के लिए तैयार होते वक्त मैनेँ तुम्हेँ डांटा, क्योँकि तुमने अपने चेहरे
को सिर्फ तौलिया भिगोकर पोँछ लिया था। मैँने अपने जूते साफ न करने के लिए
तुम्हेँ झिड़की दी। जब तुमने कुछ चीजेँ फर्श पर फेँक दी, तो मैँ तुम पर
गुस्से से चिल्लाया।
नाश्ते के समय भी मैँने तुम्हारी गलतियाँ निकालीँ। तुमने चीजेँ गिराई।
तुम अपना खाना बिना ठीक से चबाए निगल गए। तुमने मेज पर कोहनियाँ रखी।
तुमने ब्रेड पर बहुत ज्यादा मक्खन लगाया। और जब तुम खेलने लगे और मैँ
ट्रेन पकड़ने के लिए बढ़ गया, तो तुम मुड़े और हाथ हिलाकर कहा, “गुड बाई
डैड!” और मैँने मुंह बनाकर कहा, “अपने कन्धे आगे मत निकालो!”
फिर शाम को वही सब दोबारा शुरू हो गया। जब मैँ सड़क पर आया, तो मैँने
तुम्हेँ दूर से देखा। तुम घुटनोँ के बल झुके कंचे खेल रहे थे। तुम्हारी
जुराबोँ मेँ छेद थे। मैँने तुम्हारे दोस्तोँ के सामने तुम्हेँ बेईज्जत
किया और तुम्हेँ पकड़कर घर ले आया। तुमसे कहा- जुराबेँ महंगी थी और अगर
तुम्हेँ उनको खरीदना पड़ता, तो तुम याद रखते।
क्या तुम्हेँ याद है, बाद मेँ जब मैँ लाइब्रेरी मेँ पढ़ रहा था, तो तुम
कैसे वहां आए थे? तुम डरे हुए थे और तुम्हारी आँखोँ मेँ चोट खाने का भाव
था। जब मैँने अखबार से नजरेँ उठाई, तो तुम दरवाजे पर ही ठिठक गए। बीच मेँ
व्यवधान डालने से अधीर होकर मैँने कड़ाई से पूछा, “क्या चाहिए तुम्हेँ?”
तुमनेँ कुछ नहीँ कहा, बस एकदम से दौड़ पड़े और अपनी बाँहेँ मेरे गले मेँ
डाल दीँ और मुझे चूमा।
तुम्हारी नन्हीँ बाँहेँ प्यार से मुझसे लिपट गई, जो भगवान ने तुम्हारे
दिल मेँ उमड़ा दिया था और जिसे मेरी उपेक्षा भी कमजोर नहीँ कर पाई थी। और
फिर तुम सीढ़ियोँ पर थप-थप करते हुए चले गए थे।
बेटे, इसके कुछ ही देर बाद मेरे हाथोँ  से अखबार सरककर गिर गया और एक
भयानक डर मुझ पर छा गया। मुझे कैसी आदत पड़ गई है? गलतियाँ निकालने की
आदत, झिड़कियाँ देने की आदत। एक लड़का होने के लिए यह तुम्हेँ मेरा इनाम
था। ऐसा नहीँ था  कि मैँ तुम्हेँ प्यार नहीँ करता। ऐसा इसलिए था, क्योँकि
मैँ तुमसे बहुत ज्यादा उम्मीद करता था। मैँ अपनी उम्र के पैमाने से
तुम्हेँ नाप रहा था।
और तुम्हारे चरित्र मेँ इतना कुछ ऐसा था, जो अच्छा, बढ़िया और सच्चा था।
तुम्हारा छोटा-सा दिल दूर तक फैली पहाड़ियोँ पर उगने वाली सुबह जितना बड़ा
था। आज तुमने जिस तरह एकदम से दौड़कर मुझे गुडनाइट किस दी, उससे यह साफ
जाहिर हो गया। मैँ अंधेरे मेँ तुम्हारे बिस्तर के पास आया हूँ, और वहाँ
घुटनोँ के बल बैठा हूँ। मैँ शर्मिन्दा हूँ।
यह एक कमजोर-सा पश्चाताप है। मैँ जानता हूँ, अगर मैँ तुम्हारे जागने पर
तुम्हेँ यह सब बताऊं, तो तुम इन बातोँ को नहीँ समझोगे। लेकिन कल मैँ
असली डैडी बनूंगा। मैँ तुम्हारे साथ खेलूंगा, और जब तुम्हेँ चोट लगेगी तो
मुझे भी दर्द होगा, और जब तुम हंसोगे तो मैँ हसूंगा। जब मेरी जुबान पर
खीझ-भरे शब्द आएंगे, तो मैँ अपनी जुबान काट लूंगा। मैँ बार-बार इसे
दुहराता रहूंगा, “वह तो बस एक छोटा बच्चा है- एक छोटा बच्चा!”
मुझे डर है कि मैँने एक बड़े आदमी के तौर पर तुम्हारी तस्वीर मन मेँ बैठा
ली थी। लेकिन, बेटे अब मैँ तुम्हेँ देखता हूँ, अपने पलंग पर गुड़ी-मुड़ी
सोते हुए, तो मैँ देख सकता हूँ कि तुम अब भी छोटे से बच्चे हो। अभी कल ही
तो तुम अपनी मम्मी की बांहोँ मेँ थे, तुम्हारा सिर  उसके कन्धोँ पर था।
मैँने तुमसे बहुत ज्यादा मांग लिया, बहुत ज्यादा।
दोस्तोँ यह पत्र  पब्लिश करने का यही मकसद है कि एक
पिता अपनेँ बच्चोँ से कितना प्यार करता है।
मैँ खुद एक बेटा हूँ और मुझे पता है कि आखिर एक पिता का सपना, उसकी
उम्मीदेँ एक बच्चे के लिए कितनी मायनेँ रखती है। यकीनन जो बेटा ये पत्र
पढ़ रहा है वो अपनेँ पापा से उतना ही प्यार करता है जितना मैँ अपनेँ पापा
से करता हूँ। और यकीनन जो पिता ये पत्र पढ़ रहे होँगे वो अपने बेटे से
उतना ही प्यार करते होँगे जितना कि मेरे पापा मुझसे करते हैँ।
मैँ हर एक पिता और बेटोँ से यही कहना चाहुँगा कि पिता और बच्चोँ मेँ जितना
ज्यादा दोस्ताना माहौल रहेगा, उम्मीदेँ उतनी ही मजबूत होती जायेँगी, प्यार
और विश्वास भी अटुट होते जायेगा।
दोस्तोँ हम कोशिश करेँगे कि इससे संबंधित आर्टिकल यहाँ जल्दी ही पब्लिश किया जाये।

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