Monday 31 July 2017

लाल बहादुर शास्त्री जी का प्रेरणादायी जीवन Lal Bahadur Shastry - A Biography





मानव रत्न- लाल बहादुर शास्त्री
लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में मुग़ल सराय में हुआ था, इनके पिताजी का नाम श्री शारदा प्रसाद था जो कि एक शिक्षक थे. अल्पायु में ही पिताजी का देहावसान हो गया. बचपन से ही इनकी अग्निपरीक्षा आरम्भ हो चुकी थी, घर की आर्थिक स्थिति भी बहुत कमजोर थी एवं सहारे के नाम पर केवल माता श्रीमती रामदुलारी का ही सहारा था.
परिस्थियों से जूझना वे बचपन से ही सीखने लगे थे, साधन का अभाव प्रगति में बाधक नहीं होता, यह प्रेरणा उन्हें बचपन से ही मिल चुकी थी.. पारिवारिक स्थिति साधारण होते हुए भी लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपना लक्ष्य साधारण नहीं रखा. ऐसी परिस्थिति में कोई अन्य साधारण वाला साहस वाला आदमी होता तो हाईस्कूल पास करने के बाद कहीं नौकरी खोज लेता, कहीं क्लर्क या अध्यापक बन जाता. शास्त्री जी ने एक सच्चे देशभक्त की भूमिका निभाने में इस स्थिति को कभी बाधा नहीं माना.
सन 1927 में उनका विवाह ललिता देवी के साथ हो गया, शास्त्री जी ने अपने जीवन का ध्येय उनको बताया. अपने पति के इस ध्येय को ललिता देवी ने अपना ध्येय मान लिया. शास्त्री जी की देश-जाति के लिए जो उपयोगिता थी, उसे श्रीमती ललिता देवी ने स्वीकार किया तथा उनके उद्देश्य में उनकी सहायक बनीं.. शास्त्री जी को जो भी कार्य दिया जाता, उसे वे पूरे मनोयोग से ईश्वर की उपासना की तरह किया करते थे. इसका परिणाम यह हुआ कि उनकी महत्ता स्वीकार की जाने लगी. बड़े-बड़े नेता इन पर विश्वास करने लगे. इनकी प्रगति का आधार परिश्रमशीलता, कर्म के प्रति निष्ठा और मनोयोग था..
अपनी आवश्यकताओं के प्रति उन्होंने कभी भी ध्यान नहीं दिया. जेल के जीवन में जहाँ अन्य लोग छोटी-छोटी चीजों के लिए जेल अधिकारियों से प्रार्थना करते थे वहीँ शास्त्री जी स्वयं के हिस्से की वस्तु भी दूसरों को देकर प्रसन्न होते थे. अपना लैम्प एक साथी को देकर उन्होंने कडुए तेल के दीपक के सामने टालस्टाय का ‘अन्ना केरेनिना’ पढ़ डाला था. जेल का जीवन उन्होंने एक तपस्या समझकर बिताया. उन्हें देखकर जेल के अधिकारी तथा सहयात्री आश्चर्य करते थे कि जेल में भी इनका जीवन एक व्यवस्थित क्रम से चलता रहता है. इस काल में इन्होने कितने ही ग्रन्थ पढ़े. जेल में ही इन्होने ‘मेडम क्युरी’ की जीवनी लिखी.
आजादी के आंदोलन में शास्त्री जी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही थी. वे वर्षों जेल में रहे, दिन-रात परिश्रम करते रहे. जेल में रहे या खुले में उनका यह परिश्रम चलता ही रहा. आंदोलन के नेतृत्व में, जन-जागरण के प्रयासों में, संगठन में जहाँ भी उनका हाथ लगा, वहाँ-वहाँ काम बना लेकिन कभी बिगड़ा नहीं. इसका प्रमुख कारण उन्होंने यह बताया कि वे कभी काम की नहीं बल्कि नाम की चिंता किया करते थे.
दुबला, पतला, ठिगना साधारण–सा दिखने वाला यह लौहपुरुष अपने कठोर परिश्रम, निष्ठा, विश्वास के कारण उत्तरप्रदेश मंत्रीमंडल में संसदीय सचिव बनाया गया. उत्तरप्रदेश मंत्रीमंडल में जब ये गृहमंत्री पद पर थे, तब कांग्रेस के महामंत्री बनाये गए. इनका एक ऐसा व्यक्तित्व बन गया था कि आपातकालीन स्थिति में कोई काम सौंपा जा सकता था. सौंपे काम की सफलता निश्चित थी.
एक साधारण नागरिक के दायित्व को वहन करने में ईमानदारी बरतने का शुभ परिणाम यह हुआ कि भारत को एक ईमानदार नेता, एक ईमानदार प्रधानमंत्री मिल सका. पद का मोह कभी भी शास्त्री जी को नहीं रहा. वे अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ईमानदार रहे. उन्होंने राष्ट्र के पैसे को अपने उपयोग में लेने को कभी सोचा तक नहीं. सदा वे अपने को एक साधारण आदमी और जनता का सेवक मानते रहे. उनकी ईमानदारी ने ही उन्हें रेलमंत्री पद से स्तीफा देने को मजबूर किया. उनकी ईमानदारी ही थी, जिसने ‘कामराज योजना’ के अंतर्गत सबसे पहले अपना पद छोड़ा..
श्री नेहरू जी के मरने के बाद भारतीय तथा विदेशी शास्त्री जी को उस रूप में स्वीकार नहीं कर पाए, जिस रूप में नेहरू जी को किया जाता था किन्तु अपने अठारह महीनों के अल्प समय में उस धारणा को निर्मूल सिद्ध कर दिया.. इनका जीवन कर्ममय रहा. कभी-कभी तो ये काम में इतने लीन रहते थे कि भोजन करना तक भूल जाते थे. कर्मक्षेत्र में शिथिल होते, इन्हें कभी नहीं देखा गया… असम्भव दिखने वाला कार्य जब शास्त्री जी को दिया गया तो उनके परिश्रम नें उसे सहज संभव बना दिया, शास्त्री जी ने अपने एक-एक क्षण को कर्म करने में बिताया.
शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री बनें तो उनका कुछ ऐसा व्यवहार रहा कि विरोधी भी उनकी प्रशंसा करते थे. लोकप्रियता का यह गुण उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन से ही विकसित करना आरम्भ कर दिया था. राजनीति सरोवर के पंकज, शास्त्री जी सदा राजनीतिक छलों से दूर रहे…
सन 1965 में हुई ताशकंद वार्ता की समाप्ति पर यह सुचना सुनकर विश्व के प्रत्येक नागरिक रो पड़े कि एक महान व्यक्ति हमारे बीच नहीं रहा..
मरने के बाद अपने उत्तराधिकारियों के लिए कोई तो मकान, जमीन-जायदाद, धन-दौलत छोड़ जाते है, पर शास्त्री जी ने कभी स्वयं को अपने तक ही सीमित नहीं रखा, वे तो सारे देश के थे. अपने परिवार व परिजनों के लिए एक आदर्श जीवन जीने की महान पूंजी वे छोड़ गए… ऐसे महान इंसान को सारा देश सलाम करता है….
धन्यवाद!

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