Wednesday 8 April 2015

हरिद्वार महाकुम्भ का नरसंहार - By Aditi Gupta


मुस्लिम अक्रमक्रियों की बर्बरता अनेक हैं जिसमें से एक हैं हरिद्वार महाकुम्भ का नरसंहार
जिसे सेक्युलर मार्क्सवादी इतिहासकारो ने जानबूझकर छिपाया
सन् 1196 में राजपूतों का प्रभुत्व समाप्त होने के बाद दिल्ली मुस्लिम शासकों के आधिपत्य में आ गई। सन् 1206 में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई और उसके राज्यपाल कुतुबुद्दीन ऐबक ने स्वयं को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया। तब हरिद्वार क्षेत्र भी उसके राज्य का भाग था।
सन् 1217 में गुलाम वंश के सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तमश ने मंडावर समेत शिवालिक क्षेत्र को अपने अधिकार में कर लिया। सन् 1253 में सुल्तान नसीरुद्दीन पंजाब की पहाडि़यों के राजाओं पर विजय प्राप्त करता हुआ सेना सहित हरिद्वार पहुंचा और कुछ दिन ठहरने के बाद गंगा पार कर बदायूं की ओर चला गया। अजमेरीपुर उत्खनन से प्राप्त सामग्री में इस काल के प्रमाण मिलते हैं।
इतिहास से ज्ञात होता है कि तैमूर ने अपने समय में कुम्भ के दौरान बड़े पैमाने पर नरसंहार किया था। गुलाम वंश के पश्चात कुछ काल के लिए यहां की स्थिति स्पष्ट नहीं है। जियाउद्दीन बनी द्वारा लिखित 'तारीख-ए-फिरोज शाही' के अनुसार मोहम्मद तुगलक ने शिवालिक पहाडि़यों तक गंगा-यमुना के दोआब पर अधिकार कर लिया था। तब प्रशासनिक व्यवस्था की दृष्टि से सहारनपुर नगर का निर्माण करवाया गया, जो सन् 1379 में सुल्तान फिरोजशाह के अधीन आ गया। सन्1387 में फिरोजशाह तुगलक दोबारा यहां आया। सहारनपुर गजेटियर में इतिहासकार नेबिल लिखता है कि देहरादून के जंगलों में उसने शिकार किया। तुगलक सुल्तानों के राज्यकाल में खुरासन के अमीर जफर तैमूर ने हिंदुस्तान पर हमला किया और सन् 1398 में दिल्ली को ध्वस्त कर गंगा के किनारे-किनारे हरिद्वार तक पहुंच गया। तैमूर अपनी आत्मकथा 'तुजक-ए-तैमूर' या 'मलफूजात-ए-तैमूर' में लिखता है, 'जब मलिक शेख पर विजय प्राप्त करने के बाद मुझे मेरे खुफिया लोगों ने समाचार दिया कि यहां से दो कोस की दूरी पर कुटिला घाटी में बड़ी संख्या में हिन्दू लोग अपनी पत्‍‌नी एवं बच्चों के साथ एकत्र हुए हैं, उनके साथ बहुत धन-दौलत एवं पशु इत्यादि हैं, तो यह समाचार पाकर मैं तीसरे पहर की नमाज अदा कर अमीर सुलेमान के साथ दर्रा-ए-कुटिला की ओर रवाना हुआ'।

फिर तो निहत्थे हिन्दू जनता पर पर भयंकर तांडव हैं हिन्दुओ का जिस तरह कत्लेआम हुआ गंगा रंग लाल हो गया उनसे खूब पैसा लूटा महिलाओं से बलात्कार किया गया बच्चो तक को नहीं छोड़ा गंगा में तैरती हुई लाशें ही लाशें थीं
इसे हरिद्वार महाकुम्भ का नरसंहार के नाम से जाना जाता हैं
तैमूर का इतिहासकार शरीफुद्दीन याजदी अपनी किताब 'जफानामा' में 'दर्रा-ए-कुटिला' को 'दर्रा-ए-कुपिला' लिखता है और गंगाद्वार की स्थिति दर्रा-ए-कुपिला में बताता है। वह कहता है कि गंगाद्वार से निकलकर गंगा कु-पि-ला घाटी में बहती है। पुरातत्ववेत्ता कनिंघम 'कु-पि-ला' को 'कोह-पैरी' अर्थात् 'पहाड़ की पैड़ी' मानकर 'हरि की पैड़ी' का उल्लेख मानते हैं।
तैमूर व उसके इतिहासकार शरीफुद्दीन, दोनों ही के बयान से स्पष्ट है कि महाभारत में उल्लेखित कपिल तीर्थ या कपिल स्थान का नाम किसी न किसी रूप से चौदहवीं सदी में प्रचलित था। जहां तक नरसंहार का प्रश्न है शरीफुद्दीन का वर्णन तैमूर के वर्णन की कही तस्वीर है। गंगाद्वार की स्नान महत्ता एवं पितृश्राद्ध संबंधी वर्णन युवान-च्वांग [ह्वेनसांग] एवं महमूद के इतिहासकार अतवी के वर्णन के ही अनुरूप है। इस वर्णन से स्पष्ट है कि तैमूर स्नान पूर्व वैशाखी पर हरिद्वार आया था। नरसंहार के साथ-साथ उसने तत्कालीन नगर मायापुर में बरबादी मचा दी थी। बारह वर्ष के अंतराल पर संपन्न होने वाले कुम्भ पर्व की गणना के अनुसार तैमूर द्वारा किया गया यह नरसंहार आज से 615 वर्ष पूर्व सन् 1398 में घटित हुआ। यह कुंभ पर्व का ही समय था।

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